हौले हौले ……..

आज की पीढ़ी, हमारी पीढ़ी से कहीं आगे है लेकिन एक जल्दबाज़ी है, जीवन के हर एक पहलू के मुताल्लिक़, जल्दी कामयाबी चाहिए, जल्दी में रिश्ते बनाये जाते हैं, कहीं जाने की जल्दी, तो कहीं मंज़िल पाने की जल्दी, किसी के बारे में राय क़ायम करने में जल्दी,और इसी जल्दबाज़ी में हम शॉर्टकट्स ढूंढते हैं

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बचपन में जब माँ मेरी पसंद के गुड़ के पुए बना रही होतीं तो मैं पहले से ही हाथों में प्लेट लिए रसोई में माँ के इर्दगिर्द चक्कर लगाने लगती, और बार बार उचक कर कढ़ाई में झांकती कि, क्या पुए तैयार हो गए, और जैसे जैसे समय बीतता मेरा उतावलापन बढ़ता जाता, मेरी बेचैनी देख माँ मुझे उठा कर रसोई की  स्लैब पर ही बिठा दिया करतीं ,और कहतीं कि पुए धीरे धीरे पकते हैं तभी इनमे स्वाद आता है, और स्वाद लेने के लिए भी थोड़ा धैर्य रखना पड़ता है। यही फलसफा किसी भी परिस्थिति के लिए सटीक बैठता है, चाहे वो रिश्ते हों, नौकरी हो, पढ़ाई हो, या फिर ट्रैफिक जाम ही क्यों न हो।

आज की पीढ़ी, हमारी पीढ़ी से कहीं आगे है लेकिन एक जल्दबाज़ी है, जीवन के हर एक पहलू के मुताल्लिक़, जल्दी कामयाबी चाहिए, जल्दी में रिश्ते बनाये जाते हैं, कहीं जाने की जल्दी, तो कहीं मंज़िल पाने की जल्दी, किसी के बारे में राय क़ायम करने में जल्दी,और इसी जल्दबाज़ी में हम शॉर्टकट्स ढूंढते हैं। चाहे नौकरी हो, पदोन्नति हो, नए रिश्ते बनाना -तोडना सब जल्दबाज़ी में करना और फिर उन्ही गलतियों को बार बार दोहराना। थोड़ा सा सब्र या धैर्य बड़ी मुश्किलें यूं चुटकियों में हल करता है। नई नौकरी हो या फिर नए रिश्ते यहाँ तक कि नए जूते भी थोड़ा समय लेते हैं एक दूसरे के मुताबिक ढलने में, और किसी भी निष्कर्ष तक पहुँचने से पहले हमे एक बार वो मौका खुद को और सामने वाले को जरूर देना चाहिए। अमूमन, बस जरा सा धैर्य, सब ठीक कर देता है।

पीढ़ी दर पीढ़ी यही धैर्य कम पड़ता जा रहा है, अभी कुछ दिनों पहले दफ्तर में हमारे प्रोजेक्ट में कुछ नए बच्चों ने ज्वाइन किया, कुछ आकस्मिक परिस्थतियों के मद्देनज़र उन सब को आनन फ़ानन,आधी अधूरी ट्रेनिंग के साथ काम पर लगा दिया गया। जब भी हम किसी नई परिस्थति में प्रवेश करते हैं तो थोड़े असहज तो स्वाभाविक तौर पर ही रहते हैं, लेकिन असहजता में अगर अधैर्य भी मिल जाये तो बात कुछ गंभीर हो जाती है। हाँ तो बात ऑफिस में आये नए बच्चों की थी, बेचारों ने अभी ठीक तरह ज्वाइन भी नहीं किया था कि ओवरटाइम के मायाजाल में फँस गए, ऊपर से अधूरे ज्ञान के परिणामवश की गई गलतियों पर कोपभाजन भी बनना पड़ रहा था। कुल मिला कर मामला ये कि दोनों पक्षों में राय लगभग बना ली गई थी कि भाई इस कंपनी में आकर गलती कर दी और दूसरे पक्ष को अपने चयन पर खेद होता साफ़ दिखने लगा था। मामला गंभीर!

 

इन सब की हालत देख कर मुझे माँ  के पुए याद आते रहे कि कैसे धैर्य रख कर वो एक एक पुए को पूरा लाल होने तक पकातीं , अंदर तक पके, रसीले पुए, जरा से कुरकुरे और जरा से मुलायम, “कुक्ड टू दी परफेक्शन”, जिनको खाने के लिए भी धैर्य धारण करने की जरूरत होती थी, उनके ठन्डे होने तक इंतज़ार करना होता था…

 

किसी की परिस्थति और मानसिक स्थिती उसके काम पर प्रभाव जरूर छोड़ते हैं , इन बच्चों के साथ भी यही हो रहा था, एक तरफ काम नियत समय पर कर के देने का प्रेशर, तो दूसरी तरफ नए काम को ठीक तरीके से नहीं कर पाने का प्रेशर, काम के आड़े आ रहा था, तिसपर किसी को नए घर के शुभारम्भ और पिता के जन्मदिन की तैयारी का प्रेशर , किसी को शादी के लिए कन्या पक्ष के मिलने आने का प्रेशर, तो कहीं छोटे शहर से आने की भावना का प्रेशर। किसी को ब्रेकअप का टेंशन, तो किसी को अपने बड़े भाई को खो देने का ग़म,माहौल तल्ख़ और धैर्य का बांध बस टूटने की कगार पर।ये सब देख कर मैं मन ही मन सोच रही थी कि आज कल की जेनेरशन एक्स कितनी जल्दी में है, इनको चार दिन का सब्र नहीं , जरा सी मुश्किल आई नहीं कि सब्र ख़त्म। न काम करने का धैर्य है न करवाने का !

इन सब की हालत देख कर मुझे माँ  के पुए याद आते रहे कि कैसे धैर्य रख कर वो एक एक पुए को पूरा लाल होने तक पकातीं , अंदर तक पके, रसीले पुए, जरा से कुरकुरे और जरा से मुलायम, “कुक्ड टू दी परफेक्शन”, जिनको खाने के लिए भी धैर्य धारण करने की जरूरत होती थी, उनके ठन्डे होने तक इंतज़ार करना होता था।

इन बच्चों से काम के सिलसिले में बातें करने का मौका मिला, धीरे धीरे उनकी  मुश्किलों और उलझनों से भी रूबरू हुई ,पता नहीं कैसे सब मुझसे अपनी बातें साझा कर लेते हैं, लेकिन मैं भी उनके विश्वास का सम्मान हमेशा करती हूँ। कहानीकार हूँ तो कहानियां ही सुनाती हूँ , उन सबको भी सुनाई, किसी को पुए की, किसी को बीरबल की खिचड़ी की, किसी को नई नवेली दुल्हन के ससुराल में शुरूआती दिनों के उलझनों की, सभी कहानियों का सार यही था कि, कुछ भी नया आजमाने के लिए धैर्य धारण करने की जरूरत होती है, और बात करने से उलझनें सुलझती हैं। बात उन सबों की समझ में आई, और अब मामला कुछ सुलझ चला है, इस पीढ़ी की एक और बात बहुत अच्छी है, कि अगर बात इनके मतलब की हो तो ये बड़ी जल्दी समझ भी जाते हैं कि हौले हौले से दवा लगती है…….हौले हौले से ……

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