मुझे पहली बार प्यार तब हुआ था, जब मैं बाल्यावस्था से किशोरावस्था की ओर बढ़ रहा था…
इश्क पर मेरा कुछ कहना उतना ही हास्यास्पद और अप्रासंगिक है जितना कि मेरा बालों के रखरखाव के लिए सलाह देना।लेकिन हिंदुस्तानी हार नहीं मानता उस पर भी सिनेमा देखने वाला हिंदुस्तानी तो कभी नहीं। मेरी मदद को जंजीर से निकलकर शेर खाँ साहब खुद आ गए। “शेर खाँ ने शादी नहीं की, परबारातें बहुत देखीं हैं।” की तर्ज़ पर ही शेखर से इश्क नहीं हुआ, पर शेखर को इश्क़ कई बार हुआ।
प्यार में इनकार और मार्कशीट पर इश्क का सघन प्रभाव ने मुझे इतना रुलाया कि मैंने इश्क से दसवीं कक्षा में तौबा कर ली। न भी करता तो भी क्या ही कर लेता…
मुझे पहली बार प्यार तब हुआ था, जब मैं बाल्यावस्था से किशोरावस्था की ओर बढ़ रहा था। नाम लेकर किसी को रुसवा करना ठीक नहीं, पर मेरे सभी विद्यालयी सहपाठी समझ ही गएहोंगे कि मैं किसके विषय में बात कर रहा हूँ। मेरा जीवन अंतर्विरोधों की कहानी रहा है और यह कब से चल रहा है मुझे खुद पता नहीं। उस काल में भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। मेरी प्रियकविता थी सुभद्रा कुमारी चौहान लिखित झाँसी की रानी और मुझे हो चला था इश्क। वीर रस में इश्क़ बहुत खतरनाक साबित हो सकता है और मेरे साथ वही हुआ। मैंने शिक्षक-दिवसके मौके पर स्कूल के मैदान पर इज़हारे इश्क कर दिया। झाँसी छीन गई, अंग्रेजी माध्यम के स्कूल की हेडमिस्ट्रेस अंग्रेज से कम क्रूर नहीं थी। मुझे विद्यालय से निकाल दिया गया। इसीपरिप्रेक्ष्य में मैं डॉ कुमार विश्वास की इन पंक्तियों को भली भांति समझ पाता हूँ:
भ्रमर कोई कुमुदिनी पे मचल बैठा तो हंगामा,
कोई ख्वाब मेरे दिल में जो पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा।
मैं पिटाई-कुटाई का ज़िक्र कर प्रेम कहानी में निरर्थक हिंसा नहीं घुसाना चाहता। अपने-अपने पिताजी से ऐसा काण्ड करने पर मिलने वाले प्रसाद की कल्पना कर, मेरे हुए सत्कार कोसमझ लेंगे।
फिर दूसरे स्कूल में नाम लिखवाया गया। “पर्दा नहीं जब कोई खुदा से” से उठकर मेरे इश्क़ का मार्गदर्शक वाक्य हुआ “जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग तो सारा जाने है”। यूँ भी मीरशेर-ओ-तहज़ीब में शकील बदायूँनी से ऊपर आते हैं। जीवन बेहतर कट रहा था, पर फिर पता नहीं क्यों नीरज जी की एक किताब पापा के रैक से मेरे हाथ लग गई। फिर उनसे प्रभावितहोकर मैं आदमी बनने की दिशा में बढ़ निकला।
आदमी को आदमी बनाने के लिए,
ज़िन्दगी में प्यार की कहानी चाहिए।
और कहने को कहानी प्यार की,
स्याही नहीं आँखों वाला पानी चाहिए।
प्यार में इनकार और मार्कशीट पर इश्क का सघन प्रभाव ने मुझे इतना रुलाया कि मैंने इश्क से दसवीं कक्षा में तौबा कर ली। न भी करता तो भी क्या ही कर लेता, पर फिर भी…
क्रमशः
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