प्रतिपक्ष-भावना — नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों का रूप देना | यह बुद्धि के सदुपयोग को दर्शाती है जो साधना के रूप में शुरू होती हैऔर व्यवहार के रूप में परिलक्षित होती है | जब तक आत्मविश्वास नहीं आयेगा प्रतिपक्ष भावना सिद्ध नहीं होती | इसके लिए प्रथम खुद को साधने कीआवश्यकता है, पवित्र बनाने की | प्रयास द्वारा एक समय ऐसा आता है जब षटरिपुओं को नियंत्रित किया जा सकता है |
प्रतिपक्ष भावना को चित्त में आरोपित करने हेतु विपरीत शब्दों का ज्ञान अवश्यक है जैसे —
क्रोध – क्षमा
अहंकार – संयम
हिंसा – प्रेम
घृणा – स्नेह
ईर्ष्या – प्रशंसा
डर – आत्मविश्वास. आदि – आदिI
— सं. योग प्रिया (मीना लाल)