Monday, May 6, 2024
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काँग्रेस-एक विकल्प

तोषी ज्योत्स्ना

 

हालिया चुनाव परिणामों के बाद कॉंग्रेस पार्टी की अंदरूनी कशमकश अचानक सार्वजनिक विमर्श का विषय बन गई है ।ऐसा नहीं कि यह सब रातों-रात उभरा हुआ असंतोष या निराशा है यह तो गत कुछ वर्षों से निरन्तर मिल रही नाकामी का परिणाम है जो काफ़ी दिनों से न सिर्फ कॉंग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं में ,बल्कि तृणमूल स्तर यानी ग्रास रूट लेवल पर पार्टी कार्यकर्ताओं में भी व्याप्त होता जा रहा है।  यह निराशा कॉंग्रेस पार्टी और व्यापक रूप में देखा जाए तो जनतंत्र के लिये खतरनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है।

कपिल सिब्बल, ग़ुलाम नबी आज़ाद जैसे मँजे हुए नेताओं के हालिया बयानों से ऐसा लगने लगा है कि ख़ुद पार्टी के दिग्गज भी लगातार मिल रही पराजय से हिम्मत हारने लगे हैं और उन्होंने पार्टी की फाइव स्टार संस्कृति की ओर इशारा किया है जहाँ नेताओं का ज़मीन से जुड़ाव और गाँव कस्बों से जुड़े मुद्दे और कार्यकर्ताओं से सम्पर्क और जुड़ाव के टूटने की बात कही है। उन्होंने ढांचे को बदलने की जरूरत की बात कही है।उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि पिछले 72 सालों में काँग्रेस का इतना खराब प्रदर्शन कभी नहीं रहा। बदलाव की मांग  कमोबेश काँग्रेस के सभी खेमों से आ रही है। आज़ाद ने सभी स्तर पर चुनाव की बात भी कही है। अब कांग्रेस पार्टी को आत्ममंथन एवं चिंतन से ऊपर उठ कर आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है।काँग्रेस के नेताओं को भूलना नहीं चाहिए कि कॉंग्रेस एक पार्टी नहीं एक विचारधारा है जो आज भले ही हार का सामना कर हाशिये पर आ गई है मगर इन छोटी छोटी हार जीत से एक विराट पार्टी जो स्वतंत्रता पूर्व से अस्तित्व में है और जिसका सत्ता में साठ से अधिक वर्षों का इतिहास है ख़त्म नहीं हो सकती।भाजपा का “काँग्रेस मुक्त भारत” का सपना कभी पूरा नहीं होना चाहिए। भारतीय जनतंत्र में जितनी जातिगत और धर्मगत विविधता है उसमें काँग्रेस की राजनीतिक आइडियोलॉजी जिस प्रकार से सम्यक भाव से सबका समन्वय करती आई है उसी धरोहर को कायम रखने की जरूरत है।हार जीत तो लगी ही रहती है।

पीछे मुड़ कर भाजपा के इतिहास को अगर देखें तो आज की सुदृढ स्थिति में आने के क्रम में बहुत संघर्ष और धैर्य का प्रदर्शन किया है।भाजपा ने काँग्रेस की वो लहर भी देखी है जब पूरी पार्टी महज दो सीटों पर सिमट के रह गई थी लेकिन इससे भाजपा टूटी नहीं, उन्होंने गरिमापूर्ण तरीके से संसद में एक जिम्मेदार विपक्ष की सकारात्मक भूमिका निभाई। दो सीटों से दो सौ बयासी सीटों का सफ़र आसान नही रहा है।भाजपा के इस लंबे सफ़र की समीक्षा करें तो दो बातें सामने आती हैं पहली बात है नेतृत्व तथा पार्टी के सिद्धांतों में अटूट विश्वास और दूसरा अनुशासन।कितने ही उतार चढ़ाव देखे पार्टी ने लेकिन नेतृत्व पर प्रश्न कभी नहीं उठा ना ही चुनाव दर चुनाव मिलने वाली  हार से निराश हो कर विचारधारा को बदलने की बात कभी उठी। पार्टी हिंदुत्व के अपने नैरेटिव पर अड़ी रही और जनमानस तक अपनी बात पहुँचाने में सफल रही तब जाकर सत्ताधीन हुई।

आज के परिपेक्ष्य में काँग्रेस पार्टी को संघ और भाजपा से धैर्य की शिक्षा लेने की जरूरत है।महज पाँच दस साल सत्ता से बाहर रहने,या मुसलसल हार का सामना करने से काँग्रेस जैसी विराट पार्टी का अस्तित्व मिट नहीं सकता,जरूरत है तो बस फिर से जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ने की,जरूरत है अपने मूल मतदाताओं तक फिर से अपनी बात पहुँचाने की, जरूरत है तुष्टिकरण की राजनीति से हट के अपने सेकुलर आइडियोलॉजी को वस्तुतः चरितार्थ करने की,क्योंकि काँग्रेस का होना इस जनतंत्र को एक विकल्प देता है,इस पूर्ण बहुमत वाली सरकार को एक सशक्त विपक्ष देता है और सत्ताधीन की निरंकुशता को सकारात्मक विपक्ष ही लग़ाम दे सकता है।

 

तोषी ज्योत्स्ना

Toshi Jyotsna
Toshi Jyotsna
(Toshi Jyotsna is an IT professional who keeps a keen interest in writing on contemporary issues both in Hindi and English. She is a columnist, and an award-winning story writer.)

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