Tuesday, May 7, 2024
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योग के आयाम: अध्यात्म , साधना , संस्कार

जीवन को तमस से मोड़कर सत्व (प्रकाश) की ओर अभिमुख करना ही अध्यात्म है । विभिन्न सद्गुणों को अपनी चेतना में स्थापित करना ताकि वह जीवन शैली में व्यवहार के रूप में अभिव्यक्त हो रही अध्यात्म का आधार है। इसके प्रयास में समय की निश्चितता , निरंतरता , एकाग्रता एवं संकल्प शक्ति होनी चाहिए । इसे ही साधना कहते हैं, जो विभिन्न कठिनाइयों के आने पर भी नहीं रुकती । जब एक बार यह व्यवहार में परिलक्षित होने लगती है तब संस्कार बन जाती है । संस्कार जीवन के साथ आते हैं पर उन्हें दिशा प्रदान करने की आवश्यकता है । नकारात्मकता को हटाना तथा सकारात्मकता से जीवन को परिष्कृत करना ही संस्कार है तथा यौगिक जीवन का परिणाम भी।

तामसिक प्रवृत्ति हमारे जीवन में जन्मजात हैं, इन्हें सिखलाया नहीं जाता, परिस्थितिवश स्वत: प्रकट होते हैं जैसे : — क्रोध, घृणा, ईर्ष्या वगैरह । किन्तु सात्विक गुणों को प्रकट करने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है, जैसे : — प्रेम, दया, करुणा, सेवा आदि जिसकी नींव हमारे पूर्वजों ने बचपन से ही डालने की सीख दी है । हमारा घर ही वह प्रथम पाठशाला है जहां हमें अपनी माता के द्वारा इनकी शिक्षा दी जाती है ।

विपरीत परिस्थितियां हमारे मनोबल को कमजोर बनाती हैं  और एक तामसिक वातावरण का निर्माण करने में सहयोगी हैं। इनसे मुक्ति के उपाय एवं विधियों का वर्णन योग में बतलाया गया है । अध्यात्म , साधना , संस्कार सत्र हमारे गुरु स्वामी निरंजनानंद सरस्वती जी के द्वारा चलाया गया एक अभियान है जिसमें इन विधियों को अपनी दिनचर्या में शामिल करने की शिक्षा एवं प्रशिक्षण दिया जा रहा है तथा इनके द्वारा हमारे व्यवहार में आने वाले परिवर्तनों की विवेचना निरंतर की जा रही है ।

सं.योगप्रिया (मीना लाल)

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