Monday, April 29, 2024
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योग के आयाम: प्रसन्नता / यम एवं नियम

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प्रसन्नता

प्रसन्नता विपरीत परिस्थितियों में उनके नकारात्मक प्रभाव को कम करने में कवच का काम करता है| यह संतोषपूर्ण जीवन की उपलब्धि है| वर्तमान में जीना, भविष्य से भयभीत नहीं होना और अपनी अनावश्यक कामनाओं को समेटना यही सुखी जीवन का रहस्य है| संतोष का अर्थ ये नहीं कि आगे उन्नति नहीं करना है बल्कि कल और मेहनत करने का संकल्प लेना है| प्रतिदिन के जीवन में प्रसन्नता के अंतराल को धीरे-धीरे बढ़ाने का अभ्यास करने पर सारे तनाव, अवसाद और उत्तेजना के कुप्रभावों को कम किया जा सकता है| क्योंकि जीवन में रोने के हजार बहाने मिल जायेंगे पर हँसने के बहाने ढूँढने पड़ते हैं|

 

 यम एवं नियम

योग की सारी विधाओं में चाहे वह हठ योग हो, राज योग हो, क्रिया योग हो अथवा भक्ति योग हो , सभी में यम एवं नियम को प्राथमिकता दी गई है——

यम— वह प्रक्रिया है जिसमें सजगतापूर्वक अपनी कमजोरियों का अवलोकन, विश्लेषण, सुझाव और अभिव्यक्ति का अभ्यास किया जाता है|

नियम— वह व्यवस्था है जिसको आत्मसात कर जीवन में आध्यात्मिक विकास को प्राप्त किया जा सकता है| इसकी प्रक्रिया आत्मशुद्धिकरण से प्रारम्भ होकर आत्मसाक्षात्कार तक ले जाती है जहाँ जीवन में सुख-शान्ति और आनन्द की प्राप्ति होती है|

स्वा.निरंजनानन्द सरस्वति जी के मतानुसार हमें आसन , प्राणायाम और ध्यान के पूर्व यम एवं नियम को साधने की आवश्यकता है तभी मानसिकता में सकारात्मकता संभव है|

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