Saturday, May 31, 2025
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‘देस’ में निकला होगा चांद..

भारत की वैश्विक पहुंच के ध्वजवाहक प्रवासी भारतीय

नौकरी के अवसर और जीवन की बेहतरी के लिए भारत की बड़ी आबादी परदेस की राह पकड़ रही है। विदेशों में लाखों की संख्या में प्रवासी भारतीयों को काम के अच्छे अवसर और अच्छे पैसे मिल रहे हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण संख्या खाड़ी देशों में भी रहती है। पर कहते हैं ना कि दूर देश में भी अपने गांव-शहर, घर-परिवार-समाज की चिंता और यादें पीछा नहीं छोड़तीं। शायद ऐसे ही ख्यालों को लेकर ही राही मासूम रजा साहब ने लिखा होगा,

हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चांद

अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चांद।

आसमान दूर देश का हो तो भी चांद तो अपने देस का ही नजर आता है। इन पंक्तियों की डोर थामे ना जाने कितनों ने यादों के गलियारों में तफरीह कर सोचा होगा, उनके बिना किस हाल में होगा चांद। और यही सोच उन्हें अपने देस से जोड़े रखती है। प्रवासी भारतीय धनप्रेषण, व्यापार, निवेश और विदेशी मुद्रा भंडार में योगदान देकर भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे भारत और मेजबान देशों के बीच सांस्कृतिक अंतर को पाटने तथा संचार को सुविधाजनक बनाने में भी अहम किरदार निभाते हैं।

क्यों अहम हैं प्रवासी:

सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय

विदेशों में निवास करनेवाले भारतीय मूल के लोग प्रवासी भारतीय हैं। इनमें अनिवासी भारतीय (एनआरआई) और भारतीय मूल (पीआईओ) दोनों शामिल हैं। अनिवासी भारतीय वैसे नागरिक हैं जो काम, शिक्षा या अन्य उद्देश्य के लिये अस्थायी रूप से विदेश में रहते हैं। भारतीय मूल के व्यक्ति का आशय वैसे भारतवंशी विदेशी नागरिकों से है, जो पीढ़ियों से विदेश में रहते हुए भारत के साथ सांस्कृतिक संबंध कायम रखे हैं।

विदेश मंत्रालय की नवंबर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में प्रवासी भारतीयों की संख्या लगभग 3.54 करोड़ है। इसमें लगभग 1.58 करोड़ अनिवासी भारतीय (एनआरआई) और 1.95 करोड़ भारतीय मूल के व्यक्ति (पीआईओ) हैं। हर साल लगभग 25 लाख भारतीय विदेश प्रवास करते हैं। सबसे बड़ी भारतीय प्रवासी आबादी वाले शीर्ष तीन देश अमेरिका 54 लाख, संयुक्त अरब अमीरात 38 लाख और मलेशिया 29 लाख हैं। दिसंबर 2024 में लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में सरकार ने बताया था कि खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) देशों में 93 लाख भारतीय रहते हैं। इनमें संयुक्त अरब अमीरात में 38.90 लाख, सऊदी अरब में 26.45 लाख, कुवैत में 10.09 लाख, कतर में 8.30 लाख, ओमान में 6.64 लाख, बहरीन में 3.32 लाख प्रवासी भारतीय हैं। भारत का यह प्रवासी समुदाय दुनिया के सौ से भी ज़्यादा देशों तक फैला है। आंकड़ों की नजर से विश्व में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय अब भारतीय है।

धनप्रेषण में अव्वल

भारत के भविष्य को आकार देने में भी प्रवासी समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसमें अहम कड़ी प्रवासियों के भारत में रह रहे परिवार, मित्र या रिश्तेदारों को धन हस्तांतरण या धनप्रेषण (रेमिटेंस) की है। इससे गरीबी उन्मूलन, शिक्षा के लिए धन तथा बुनियादी ढांचे को समर्थन देने में मदद मिलती है। विशेष रूप से केरल और पंजाब जैसे राज्यों में। वर्ष2024 में भारत को 129.1 अरब डॉलर का धनप्रेषण प्राप्त हुआ। यह किसी भी देश को एक वर्ष में मिला सबसे अधिक धन है। यह वैश्विक धनप्रेषण का 14.3 फीसदी हिस्सा था। अन्य देशों में दूसरे नंबर पर मेक्सिको 68 अरब डॉलर, फिर चीन 48 अरब डॉलर, फिलीपींस 40 अरब डॉलर और पाकिस्तान 33 अरब डॉलर थे।

आज भारत के सकल घरेलू उत्पाद में धनप्रेषण की हिस्सेदारी लगभग 3.3 प्रतिशत हो गई है। इस धनराशि का इस्तेमाल स्थानीय अर्थव्यवस्था में उपभोग, व्यय और निवेश में होता है। भारतीय उद्यमों को वैश्विक बाज़ारों से जोड़कर प्रवासी देश के व्यापार परिदृश्य को समृद्ध बना रहे हैं। भारत को भेजा जानेवाले धन घरेलू आय, आर्थिक स्थिरता तथा समग्र विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। विदेशों, खासकर खाड़ी देशों से भारतीयों द्वारा भेजी गई धनराशि देश के विदेशी मुद्रा भंडार में महत्वपूर्ण योगदान देती है। 2024 में कुल धनप्रेषण में से 38 प्रतिशत हिस्सा जीसीसी देशों से प्राप्त हुआ था।

उद्यमिता और नवाचार

प्रवासी समुदाय भारत के साथ दुनिया के भविष्य को आकार दे रहा है। वहीं, व्यवसायों में निवेश कर या अपने ज्ञान और विशेषज्ञता से भारत में नवाचार (इनोवेशन) और तकनीकी उन्नति में योगदान दे रहे हैं। इससे आईटी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र समृद्ध बन रहे हैं। प्रवासी भारतीयों ने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है। प्रौद्योगिकी और नवाचार में श्रेष्ठता का प्रमाण वैश्विक आईटी कंपनियां जैसे अल्फाबेट-माइक्रोसॉफ्ट में भारतीय मूल के इंजीनियरों का दबदबा है। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की बात करें तो भारतीय डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्य कार्यकर्ता अमेरिका, यूके, खाड़ी तथा अफ्रीकी देशों के चिकित्सा कार्यबल का अहम हिस्सा बनकर उभरे हैं।

वित्तीय परिसंचालन के क्षेत्र में देखें तो विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष अजय बंगा हैं। विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय मूल के वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रामकृष्णन वेंकटरमन हैं। सर्वाधिक प्रभावी क्षेत्र राजनीति और शासन के हैं। अमेरिका की पूर्व उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस, यूके के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक जैसे उच्च पदस्थ भारतीय मूल के राजनेता अपने प्रवासी देश की नीतियों को आकार तथा द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा दे रहे हैं। वहीं, डोनाल्ड ट्रंप सरकार में भी प्रमुख पदों पर कई भारतीय मूल के लोग हैं। इनमें विवेक रामास्वामी, कश्यप प्रमोद काश पटेल, जय भट्टाचार्या, श्रीराम कृष्णन, हरमीत ढिल्लों और ऊषा वांस प्रमुख हैं। लेकिन प्रवासी भारतीयों की कहानियां केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों के साथ समाप्त नहीं होतीं, उनका दायरा कहीं आगे का है। यह साझा जड़ों, आपसी विकास और बेहतर भविष्य की दृष्टि की कहानी है। आज जब दुनिया के देश एक-दूसरे के नजदीक आ रही है। ऐसे में प्रवासी भारतीय वैश्विक समुदाय और भारत के बीच सेतु का काम कर रहे हैं। इनका सामाजिक, सांस्कृतिक या आर्थिक योगदान विश्व मंच पर भारत की छवि को सशक्त और प्रभावी बना रहा है।

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