Friday, May 17, 2024
spot_img

दरख्तों में आदमी का अक्स ढूंढता शख्स

सतीश कुमार मिश्र

जावेद को दरख्तों में मानव आकृति ढूंढ कर सहेजने का शौक है। पेशे से वकील जावेद ने बारी रोड स्थित अपने घर में ऐसी 800 आकृतियां संजो कर रखी हैं

कुछ लोग अच्छी पढ़ाई करने के बाद कोई बड़ा पद हासिल कर अपनी पहचान बनाते हैं तो कुछ लोगों का अजूबा शौक ही उनकी शोहरत की वजह बन जाता है। ऐसे ही लोगों में से एक हैं गया के सैयद शाह जावेद यूसुफ।
जावेद को दरख्तों में मानव आकृति ढूंढ कर सहेजने का शौक है। पेशे से वकील जावेद ने बारी रोड स्थित अपने घर में ऐसी 800 आकृतियां संजो कर रखी हैं।
पेड़ की शाखाओंए तनों व जड़ों में उग आने वाली मानव आकृति को खोजते हैं और उसे संग्रहित करते हैं।  इसी शौक ने उन्हें देश भर के छोटे. बड़े असंख्य जंगलों की सैर करा दी है। जंगल भ्रमण के दौरान वह कुछ और नहीं करते सिर्फ और सिर्फ दरख्तों में उग आने वाली मानव आकृतियों को ढूंढ कर निकालते हैं और घर लेकर चले आते हैं। हर आकृति को उसके प्राथमिक रूप में कोई तब्दीली किये बिना उसका रंग. रोगन कर अपने घर में रखते हैं। यह काम वह बड़ी मेहनत से करते हैं। आकृतियां खोजने के दौरान
उनका एक बार शेर का सामना हो गया। भगवान का शुक्र था कि उनकी जान बच गई। इसी तरह एक बार आकृति ढूंढने में रात हो गई और एक साधू की कुटिया में रात बितानी पड़ी। सैयद यूसुफ का कहना है कि पेड़ में स्वतः उग आनेवाली आकृतियां कुछ न कुछ संदेश देती हैं।

उस संदेश को वह अंग्रेजी के कवि  किट्सए शेक्सपियर उर्दू के शायर मीरए गालिब के शेरों का हवाला देते हुए कैप्शन खुद देते हैं। उसे पढ़ कर आम लोग आकृति की भाव.भंगिमा को आसानी से समझ जाते हैं। बात करते. करते भाव विभोर होकर वह बताते हैं कि हर एक आकृति के पीछे उनकी सुनहरी यादें छिपी हैं। खास बात भी है कि मानव आकृति के अलावा उन्होंने हिंदू देवी.देवताओं और ग्रीक फिलॉस्फरए वेनस की आकृति को भी दरख़तों में ढूंढ निकाला है।

  उन्होंने बताया की  टाटा स्टील के चेयरमैन रहे रूसी मोदी ने नब्बे के दशक में उनकी आकृतियों को देख कर कहा था कि ‘हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है बड़ी मुश्किल से होता है दीदावर पैदा।  सैयद यूसुफ ने बताया कि उन्होंने अपनी आकृतियों की प्रदर्शनी भारत सरकार के आमंत्रण पर लगाई थीएजो मेरे जीवन की बड़ी उपलब्धि है। 

 इनका दावा है कि जिस रूप में पेड़ से आकृति निकालते हैं उसी रूप में उसे संजोते भी हैं।  उसमें काट.छांट करना उन्हें तनिक भी पसंद नहीं है। सैयद यूसुफ का यह भी कहना है ये आकृतियां इस बात की गवाही देती है कि पुराने जमाने लोग बेशक दुनिया से चले गए पर उनका अक्स अब भी किसी.न.किसी रूप में पेड़ों में जिंदा है। उन्होंने बताया की  टाटा स्टील के चेयरमैन रहे रूसी मोदी ने नब्बे के दशक में उनकी आकृतियों को देख कर कहा था कि ‘हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है बड़ी मुश्किल से होता है दीदावर पैदा।  सैयद यूसुफ ने बताया कि उन्होंने अपनी आकृतियों की प्रदर्शनी भारत सरकार के आमंत्रण पर लगाई थीएजो मेरे जीवन की बड़ी उपलब्धि है।
— साभार हॉटलाइन

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -

EDITOR'S CHOICE

Register Here to Nominate