Saturday, April 20, 2024
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काबुलीवाले का देश : जहां शिकायत करना मना है!

तालिबान पश्तून भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है विद्यार्थी। इस्लामी कट्टरपंथी विचारधारा के प्रचारक और स्वघोषित संस्थापक तालिबान का उदय वर्ष 1990 की शुरुआत में धर्म संस्थापना की आड़ में देश को पाषाणयुग में पहुँचाने की साजिश थी

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पड़ोसी देश अफगानिस्तान जहां से सदियों से व्यापार और व्यवहार निर्बाध चलता रहा है, अचानक तालिबानों के आतंक के साम्राज्य में परिवर्तित हो गया जिसकी आशंका कुछ दिनों से जताई तो जा रही थी लेकिन यह सब इतनी जल्दी रातोंरात होगा इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।

तालिबान पश्तून भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है विद्यार्थी। इस्लामी कट्टरपंथी विचारधारा के प्रचारक और स्वघोषित संस्थापक तालिबान का उदय वर्ष 1990 की शुरुआत में धर्म संस्थापना की आड़ में देश को पाषाणयुग में पहुँचाने की साजिश थी।

सन 1998 तक इनका शासन सम्पूर्ण अफगानिस्तान पर हो गया था। इस्लाम के शरिया कानून को देश का कानून घोषित कर जनता, खास कर महिलाओं पर इतनी पाबंदियाँ लगा दी गईं कि खुली हवा में सांस लेना भी मानो गुनाह हो गया था। एक ऐसा शासन जिसमें नैतिकता और पाप पुण्य के आधार पर आदिमकालिक दंड के प्रावधान हैं। जहाँ लड़कियों को शिक्षा का अधिकार तो दूर की बात, घर से अकेले निकलने का अधिकार नहीं, जहां पुरूषों की दाढ़ी की लंबाई सरकार और सरकार का धर्म निर्धारित करता हो, जहाँ नई टेक्नोलॉजी जैसे स्मार्ट फोन, टेलीविजन,सिनेमा, संगीत, कंप्यूटर आदि क़ानूनन हराम हों , वहां के तो परिंदे भी शायद दहशत की ज़द में ऊंची उड़ान नही भरते होंगे।

इस सब की पटकथा फरवरी 29, 2020 को लिखी गई थी जब अमेरिका और तालिबान के बीच अमेरिकी फौज की चरणबद्ध वापसी का समझौता हुआ। इस समझौते में अमेरिकी मिलिट्री फ़ोर्स की तरफ से शांति प्रस्ताव था जिसे तालिबानों ने मान लिया और अपनी युद्धपरक नीतियों को क़ायम रखते हुए बस निशाने बदल दिए…

सजायाफ्ता के लिए सार्वजनिक दंड का प्रावधान तालिबानी कट्टरता और बर्बरता को बख़ूबी बयान करता है।इस दमनकारी शासन का अंत साल 2001 में अमेरिकी हस्तक्षेप से हुआ था जिसकी पृष्टभूमि में अमेरिका पर हुआ ट्विन टावर हमले का बदला था। साँस लेना सीख लिया था अफ़गानी जनता ने। बच्चियाँ हज़ारों की तादाद में स्कूल जाने लगीं थीं, समाज में,सरकार में भागीदारी निभाने लगी थीं।

न्यायालय हस्पताल सब की दहलीज लाँघने लगीं थीं।सोशल मीडिया, मनोरंजन सबकी खुली छूट अमेरिकी फौज के साये में देश धीरे धीरे सामान्य हो चला था,मगर तालिबान जिस मौके की तलाश में था वो उसे 20 साल बाद फिर से मिल गया।

इस सब की पटकथा फरवरी 29, 2020 को लिखी गई थी जब अमेरिका और तालिबान के बीच अमेरिकी फौज की चरणबद्ध वापसी का समझौता हुआ। इस समझौते में अमेरिकी मिलिट्री फ़ोर्स की तरफ से शांति प्रस्ताव था जिसे तालिबानों ने मान लिया और अपनी युद्धपरक नीतियों को क़ायम रखते हुए बस निशाने बदल दिए, जो हमले सेना पर हुआ करते थे अब नई रणनीति के तहत अफ़गानी नागरिकों पर होने लगे।

पिछले एक साल में 707 अफ़गानी नागरिकों की हत्या प्रायोजित हमलों में हुई , जिनमे, जज, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल हैं। इससे देश मे डर का ऐसा माहौल बना दिया गया कि जैसे ही बीस साल पुराने रहनुमा का साया हटने की बात हुई खौफ़जदा स्थानीय सरकार और जनता ने कट्टरपंथी सोच के आगे बिना लड़े बिना नाराज़गी जताए घुटने टेक दिए, इतना ही नहीं देश छोड़कर भी भाग निकले।ऐसा डर का माहौल व्याप्त हुआ है कि लोग अपने परिवार पीछे छोड़ बस किसी प्रकार देश छोड़ भाग जाना चाहते हैं।स्त्रियों बच्चियों की दशा रातोंरात फिर से बीस साल पहले वाली हो गई है। कैसा डर, कैसी घुटन होगी,जिससे निजात पाने को अफ़ग़ान लोग अपना घरबार माल-असबाब रोज़ी रोज़गार छोड़ बेतहाशा दुनिया के किसी भी कोने और कैसे भी हालातों में जीनों को तैयार है?

भारत समेत दुनिया के देशों ने दिल खोल कर उनका स्वागत भी किया है और कूटनीतिक तरीके से अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी का इंतज़ाम कर बिना किसी प्रतिक्रिया के इस नए तालिबानी शासन के अगले कदम पर कड़ी नजर बनाए हुए हैं। लेकिन जो रह गए उनका क्या? खुली हवा में साँस लेने, पढ़ने, अपनी मर्ज़ी के मालिक होने की चाह का क्या?और शिकायत करने के हक़ का क्या?

(साभार हॉटलाइन)

 

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Toshi Jyotsna
(Toshi Jyotsna is an IT professional who keeps a keen interest in writing on contemporary issues both in Hindi and English. She is a columnist, and an award-winning story writer.)

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